हर साल 50 फीट उंचा रावण बनाते थे..
इस बार हमने 20 फीट उंचा रावण बानाया..
20 फीट के रावण को जलाने के लिये..
एक बड़े नेता जी को आमंत्रण पत्र भिजवाया..
नेता जी ने फोन कर के हमसे पुछवाया..
क्या एक ही पुतला दहन का कार्यक़म बनवाया है ?
कुम्भकरण का रोल कहाँ पर कट करवाया है ?
हमने कहाँ महंगाई ने रावण की उचाई को काट दिया है...
इसीलिये हमने भी कुम्भकरण का रोल थोड़ा सा छांट दिया है !!
नेता जी ने आमंत्रण की हामी भिजवाई,
तय समय पर रावण को जलाने की बारी आई,
लेकिन जैसे ही रावण पर पड़ी नेता जी की परछाई...
पुतले के अंदर सजीव रावण की आत्मा आई !!
अब रावण विपक्ष के नेता की तरह चिल्लाया...
अबे नेता के बच्चे तू मुझे क्यों जलाने आया ?
युगों से में मर्यादा पुरषोत्तम राम के हाथों जला हू ,
अब क्या कलयुग में मुझे येह अपमान भी सेहना पड़ेगा ?
तुझ जैसे निकम्मे भ्रष्ट नेता के हाथो जलना पड़ेगा !!
नेता ने पूरा साहस दिखाया, ना शर्माया ना घबराया !!
अपने अनुभव का bio data उसने रावण को बताया,
हे रावण, हम भ्रष्टाचार की गंगोत्री से पार पा चुके हैं ...
सम्मान अपमान की मोह-माया से बहुत उपर जा चुके हैं...
दंगो से लेकर कोयले घोटालो की फाइल तक जला चुके है ...
सियासत के बियाबान में सद्भावना और विश्वास को खा चुके हैं ...
इसके आगे तुझे और कुछ नहीं कहना होगा...
और आज फिर से तुझे नेता के हाथों जलना होगा
... आज फिर से तुझे नेता के हाथों जलना होगा !!!
स्वरचित : पं. तापस तिवारी
१३ / १०/ २०१३
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