- जनाब मुनव्वर राणा
बलंदी देर तक किस शक्स के हिस्से में रहती है.....
बहूत उंची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है !!
बहूत जी चाहता है कैदे-ए-जा से हम निकल जाएं..
तुम्हारी याद भी लेकिन इसी मलबे में रहती है !!
ये ऐसा कर्ज है जो मैं अदा कर भी नहीं सकता..
मैं जब तक घर ना लौटूँ मेरी माँ सजदे में रहती है !!
अब दोस्त कोई लाओ मुकाबिल में हमारे ....
दुश्मन तो कोई कद के बराबर नहीं निकला !!!
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई !!!
हम एक चेहरे में अपना नाक-ओ-नक्शा छोड़ आये हैं !!!
वो लीची से लदे पेड़ों का खामोशी से उतरना ...
मुजफ्फरपुर हम तुझको अकेला छोड़ आये हैं !!!
जो एक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती है ...
वहीं हसरत के ख्वाबों को भटकता छोड़ आयें हैं !!!
यहाँ आते हर कीमती समान ले आये ...
मगर इक़बाल का लिक्खा तराना छोड़ आये हैं !!!
किसी की आरज़ू के पावों में ज़ंजीर डाली थी...
किसी की खून की तीली में फन्दा छोड़ आयें हैं !!
हमारा रास्ता तकते हुए पथरा गयी होंगी ...
वो आखें जिनको हम खिड़की पे रखा छोड़ आयें हैं !!!
गये वक़्तों की एल्बम देखने बैठे तो याद आया...
हम एक चेहरे में अपना नाक-ओ-नक्शा छोड़ आये हैं !!!
- जनाब मुनव्वर राणा
Note : The image of the has been taken from wiki (Lychee_garden_in_Muzaffarpur.JPG)
Just compiling thoughts : www.tapastiwari.com
Greetings from the UK. I enjoyed reading.
ReplyDeleteThank you. Love love, Andrew. Bye.